आमतौर पर मांगलिक शब्द का स्वर घरों में तब सुनाई देता है जब कन्याएं शादी के योग्य नजर आने लगती हैं। कन्या मांगलिक हो तो मांगलिक लड़का ढूंढना पड़ता है और मांगलिक न हो तो भी लड़का तो ढूंढना ही पड़ता है। कई बार कुण्डली मिलान पर बात आकर अटक जाती है। कभी लड़की मांगलिक निकलती है तो कभी लड़का। इसके चलते कई अच्छे संबंध बनते-बनते रह जाते हैं।
जैसा कि लोगों के मुंह से सुनता हूं कि मांगलिक दोष होता है और इसे कन्या में तो होना ही नहीं चाहिए। वर में हो तो चल जाता है लेकिन कन्या में मांगलिक दोष वैवाहिक जीवन को खराब कर देता है। मैं खुद भी इस थ्योरी को मानता हूं। इसलिए नहीं कि मैं पुरातनपंथी हूं बल्कि इसलिए कि मैं कल्पना कर सकता हूं कि एक मांगलिक लड़की की एक गैर मांगलिक लड़के साथ शादी कर दी जाए तो कन्या, वर पर हर तरह से हावी रहेगी। अब अगर ऐसा होता है तो वैवाहिक जीवन तो खराब होना ही है। इसके विपरीत वर मांगलिक हो और कन्या मांगलिक न हो तो वर हावी रहेगा और वैवाहिक जीवन ठीक चलता रहेगा। हो सकता है भारतीय सभ्यता की यह पुराने समय में तो ठीक रही होगी लेकिन आज के परिपेक्ष्य में देखा जाए तो पति और पत्नी दोनों ही बराबरी के हकदार हैं। सो या तो दोनों ही मांगलिक हों या दोनों ही गैर मांगलिक। इसमें अर्थ इतना ही है कि आपस की हार्मोनी बनी रहे। क्या जरूरत है कि रिश्ते में एक पक्ष हावी रहे। हो सकता है कुण्डली मिलान करने वाले बहुत से ज्योतिषियों को इस हार्मोनी के बारे में जानकारी न हो लेकिन वे इस आधार पर बन रहे बेमेल जोड़े को जाने-अनजाने रोकने की कोशिश करते हैं। गंभीरता के कुण्डली मिलान कराने वाले अधिकांश परिवारों में इस कारण तलाक के मामले भी बहुत कम होते हैं।
अब दूसरा पक्ष यानि मांगलिक होने का अर्थ क्या है ?
कोई जातक चाहे वह स्त्री हो या पुरुष उसके मांगलिक होने का अर्थ है कि उसकी कुण्डली में मंगल अपनी प्रभावी स्थिति में है। शादी के लिए मंगल को जिन स्थानों पर देखा जाता है वे लग्न, चौथे, सातवें, आठवें और बारहवें भाव हैं। इनमें से केवल आठवां और बारहवां भाव सामान्य तौर पर खराब माना जाता है। सामान्य तौर का अर्थ है कि विशेष परिस्थितियों में इन स्थानों पर बैठा मंगल भी अच्छे परिणाम दे सकता है। तो लग्न का मंगल व्यक्ति की पर्सनेलिटी को बहुत अधिक तीक्ष्ण बना देता है, चौथे का मंगल जातक को कड़ी पारिवारिक पृष्ठभूमि देता है। सातवें स्थान का मंगल जातक को साथी या सहयोगी के प्रति कठोर बनाता है। आठवें और बारहवें स्थान का मंगल आयु और शारीरिक क्षमताओं को प्रभावित करता है। इन स्थानों पर बैठा मंगल यदि अच्छे प्रभाव में है तो जातक के व्यवहार में मंगल के अच्छे गुण आएंगे और खराब प्रभाव होने पर खराब गुण आएंगे। जैसे एक आला दर्जे का सर्जन भी मांगलिक हो सकता है और एक डाकू भी। यह बहुत सामान्य उदाहरण है। यही स्थिति उच्च स्तरीय मैनेजर और सेना के अधिकारी में भी देखी जा सकती है जिसे कि कठोर निर्णय लेने हैं। मांगलिक व्यक्ति देखने में ललासी वाले मुख का, कठोर निर्णय लेने वाला, कठोर वचन बोलने वाला, लगातार काम करने वाला, विपरीत लिंग के प्रति कम आकर्षित होने वाला, प्लान बनाकर काम करने वाला, कठोर अनुशासन बनाने और उसे फॉलो करने वाला, एक बार जिस काम में जुटे उसे अंत तक करने वाला, नए अनजाने कामों को शीघ्रता से हाथ में लेने वाला और लड़ाई से नहीं घबराने वाला होता है। इन्हीं विशेषताओं के कारण गैर मांगलिक व्यक्ति अधिक देर तक मांगलिक के सानिध्य में नहीं रह पाता।
इन विशेषताओं और इसी के कारण पैदा हुई बाध्यताओं के कारण एक मांगलिक व्यक्ति की गैर मांगलिक से निभ नहीं पाती है। इस कारण दोनों को अलग-अलग करने की कोशिश की जाती है। सेना में प्रवेश लेने वाले अधिकांश लोग किसी न किसी कारण से मांगलिक असर वाले होते हैं। आपने भी गौर किया होगा कि सिविलियन्स से सेना को अलग रखा जाता है। कमोबेश इसका कारण यह भी होता है कि जिस डिसिप्लिन को सेना फॉलो करती है उसे आम आदमी समझ नहीं सकता और आम आदमी की गतिविधियों को सेना का जवान समझ नहीं पाता।
लॉजिकल एप्रोच
मांगलिक लोगों की यह एक और बड़ी खासियत होती है कि उनकी किसी भी काम के प्रति बहत लॉजिकल एप्रोच होती है। दुनियादारी में या प्रेम में दो और दो पांच हो सकते हैं लेकिन एक मांगलिक व्यक्ति के लिए दो और दो चार ही होंगे। प्यार में भी। इसी कारण किसी कुण्डली में मंगल और शुक्र की युति जातक को गणितज्ञ भी बना देती है। इसमें लॉजिक और लॉजिक के साथ लग्जरी का भाव होता है। आपको ऐसे लोगों का समूह सिलिकॉन वैली में दिखाई दे सकता है। ऑस्ट्रेलियाई चिंतक एलन पीज की मानूं तो पुरुष स्त्रियों की तुलना में अधिक लॉजिकल होते हैं। मुझे भी यही लगता है। इसी कारण सिलिकॉन वैली में शादियों की औसत आयु चार वर्ष है। सौ प्रतिशत लॉजिकल पुरुषों और लॉजिक के साथ कॉम्प्रोमाइज करने वाली स्त्रियों की अधिक दिनों तक बन नही पाती।